बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

उनका बहुत बडी सनखया में म्हिलाय्व कृषि कार्य में संल्प्त है। एक आनुमान के आनुसार बुवाई से लेकर भादरण तक उनका योगदान ७० से लेकर ८० प्रतिसत तक रहा है। महिला किसानों को खेतिहर मजदूरों के अत्यन्त योगदान के बावजूद भी उन्हें किसान के रूप में मान्यता नहीं मिली है और आज भी खेती में उन्हें पुरुष रूप में ही पहचान मिली है और खेती से जुडाव के सरे औपचारिक रस्ते पुरुषों के माध्यम से होकर गुजरते है। कृषि संबंधी तनीकों के विस्तार हों व सूच्नानो और जानकारियों को पहुचने की व्य्वैस्थाए, कार्य बोझ को कम करने के प्रयास हों या भोजन, फसल के चुनाव के निनारी, जमीनों पर हकदारी हो या बाजार हरे क क्षेत्र में कृषि महिला को वन्छ्त तरजीह नही डी गई और उन्हें हाशिया पर ही रखा जाता रहा, महिलाओ के कृषि क्षेत्र में योगदान के द्रिशोकं से देखा जाए तो यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा की भारतीय कृषक का वास्तविक चेहरा एक महिला क है। भारतीय महिलाए कृषि का एक महेत्पूर्ण आधार है न की एक मात्र सहायक। कृषि कार्यों में वह अपना साथक योगदान सदैव से प्रस्तुत करती ई है. ये समस्त तथ्य महिला क्रशको के पक्ष में है पान्तु यथाथ्र से कोशों दूर है. महिलाओ के श्रम तथा प्रयाशों को एक कृषक के रूप में कभी भी मूल्यांकित नहीं किया जाता. यह असंतुलन महिला कृषकों को, उनके अधिकारों तथा नियंत्रण को काफी सार्थक रूप से परभावित करता है कृषि नीती में अवश्यक अमूल चूल परित्वत्सं परदेस में लगभग ८० प्रतिसत से ज्यादा लघु और सीमान्त कृषक है जो अपनी आजीविका हेतु कृषि पर निभर है अन्तः यह आवस्यकता बन जाती है इनके हित में कदम उठाये जाए जिससे कृषि विविधीकर्ण को बधवा मिले, उ.प. में खाद प्रस्नास्क्र्ण एवं गैर कृषि गतिविधियों के स्मवेसा की अपर संभावनाए है जिसके लिए अव्सेथाप्नात्मक आधार का विकेंद्रीकर्ण जरूर्व्व है, किसानों की प्रर्कातिक आपदाओं से होने वाली हानियाँ को कम करने हेतु प्रीस्थित के अनुकूल फसलों को विकास एवं प्रसार करना आवश्यक है, किसानो के आव्स्यक्ताओं की पूर्ति करने वाले उचित प्रसार तंत्रों की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए, समुचित जानकारियों को प्रचार-प्रसार एवं सेवा में सुधर करते हुए फसल बीमा योजना का आतिसीघ्र किर्यन्याँ किया जन चाहिए, एकल फसल, अनुयुक्त फसल, प्रतियों इस्थानीय क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए रासायनिक खाद्यों के प्रयोग को बढावा न दिया जाए , इन समस्त मांगो को लेकर हल ही में उत्तर परदेस के विभिन्न जनपदों में करीब ५००० लघु और सीमान्त कृषक ने पैदल मार्च का आयोजन किया था, इस मार्च में परदेस में कृषकों से संबधित व्याप्त कुछ इथानीय मुद्दे भी उठाये गए थे,

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