बुधवार, 14 मई 2008

बीडी - एक नज़र


तम्बाकू जनित धुम्रपान के छेत्र में भारतीये बाज़ार बीडी से पुरी तरह से भरें हुए हैं। बीडी जिसको की तेंदू के पत्ते में लपेटकर बनाया जाता है पुरी तरह से तम्बाकू से भरी हुई होती है। बीडी का प्रयोग वैसे तो मुख्यतः आदमियों के द्वारा किया जाता है लेकिन इसको बनाने में महिलाओं और बच्चों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है जो बीडी को अपने घरों में बनातें हैं। सिगरेट के मुकाबले बीडी की बिक्री करीब ८:१ की है । यानि की प्रत्येक ८ बीडी पर १ सिगरेट की बिक्री होती है।
अत्यन्त घातक है बीडी का पीना : -
- बीडी पीने से लोगों में तपेदिक या टी ० बी० , स्वांश की बीमारी इत्यादी में बढोतरी देखी गई है। ।
- बंगलोर में किए गए एक शोध के द्वारा पता चलता है की प्रतिदिन १० बीडी पीने वाले व्यक्ति को करीब चार गुना ह्रदय के रोग का खतरा ज्यादा रहता है सामान्यतः ऐसे लोगों के जो की बीडी का उपयोग नही करते हैं।
- भारत में किए गए शोध के द्वारा भी इस बात का पता चलता है की बीडी पीने वाले लोगों में फेफडे के कैंसर के होने का खतरा करीब ६ गुना ज्यादा रहता है वनस्पति उन लोगों के जो की बीडी का उपयोग नही करते हैं।
- तमिलनाडु में किए गए शोध के द्वारा यह बात निकल कर आई की करीब ४७ % ग्रामीण पुरुषों की मौत जो की तपेदिक की बीमारी से भी ग्रसित थे , बीडी पीने की वजह से हुई।
- मुम्बई में किए गए शोध के द्वारा भी इस बात का पता चलता है की ऐसे लोग जो की बीडी का सेवन करतें हैं उनमें मौत की संभावनाएं करीब ६४ % अधिक रहती है वनस्पति उन लोगों के जो की इसका उपयोग नही करते हैं। यहाँ तक की ऐसे लोगों में भी जो की अनुमानतः करीब ५ बीडी का सेवन प्रतिदिन करतें हैं उनमे इसके द्वारा होने वाली मौतों की संभावनाएं करीब ४२ प्रतिशत अधिक होती है।
- बीडी का सेवन करने वाले लोग कार्बन मोनोआक्साइड और निकोटीन आदि को ज्यादा छोड़ते हैं वनस्पति पश्चिमी शैली की बनावट की सिगरेट के । इसलिये बीडी या तो ज्यादा या फिर सिगरेट के बराबर खतरनाक है।
--- तम्बाकू की खेती और इसके पत्ते से बीडी बनाने के व्यवसाय में लगे हुए लोगों और उनके परिवारों को इससे काफी खतरा है ।
- शोधों से पता चलता है की जो लोग बीडी के पत्ते की कटाई के काम में लगे हुए हैं उनके पेशाब में निकोटिन की मात्र पाए गई है। लगातार इस काम में बने रहने से मजदूरों में इस बात की भी सम्भावना बढ़ जाती है की वह इस नशे के आदि हो जायें।
- ऐसे लोग जो बीडी के पत्तो को लपेटने का काम करतें हैं उनमें तपेदिक , अस्थमा , एनेमिया, आंखों की समस्याएँ तथा महिलाओं में स्त्री रोग से संबंधित समस्याएँ आ सकती हैं।
- बीडी को घरों में रखने से उनमे रहने वाले लोगों में खांसने और सरदर्द की बीमारी शुरू हो जाती है।
- बीडी के पत्तों को लपेटने के काम में लगे हुए लोग गरीबी की तरफ़ और बढ़ते जातें हैं।
- राज्य सरकारों द्वारा बीडी के लपेटने के काम में लगे हुए लोगों के लिए जो कीमतें निर्धारित की गई है वह प्रति १००० बीडी लपेटने पर उत्तर प्रदेश में २९ रूपये और गुजरात में ६६.८ रूपये निर्धारित है।
- लगातार बीडी के काम में लगे हुए लोगों में करीब ४५ साल की उम्र तक उनके हाथों के उंगलियों की उपरी सतह की खालें मर जाती हैं और वह काम करना बंद कर देती हैं। इस परिस्थिति में वह लोग जो बीडी बनाने का काम नही कर पाते भीख मांगने का काम शुरू कर देतें हैं।
- बीडी उत्पादन का सबसे मुख्य भार महिलाएं और बच्चे उठाते हैं।
- करीब २२५,००० बच्चे बीडी बनाने के काम में लगे हुए हैं ।
- करीब ७६ से ९५ % महिलाओं को बीडी बनाने से रोजगार प्रदान होता है।
- वह महिलाएं जो की बीडी के पत्ते बनाने का काम में लगी हैं वह शारीरिक और अभद्र बातों से भी ज्यादा प्रताडित होती हैं।
भारत में बीडी पर उत्पाद कर की व्यवस्था, सार और कुछ सुझाव :-
सुझाव देने से पहले हम बीडी और सिगरेट इत्यादी पर लागू उसके ऊपर उत्पाद कर और उसके प्रविधानो के बारें में तथ्य जान लें।
- बीडी के लिए उत्पाद शुल्क का निर्धारण प्रत्येक १००० बीडी के ऊपर किया जाता है इसमे भी इस बात को ध्यान में रखा जाता है की वह हाथ द्वारा बनी हुई है या फिर मशीन के द्वारा। ज्ञात हो की करीब ९८ % बीडी हाथ द्वारा ही बनी होति है।
- यदि एक साल में बीडी उत्पादन करता द्वारा २० लाख से कम बीडी का उत्पादन बिना मशीन की सहायता से करता है तो ऐसे में वह कर से मुक्त होता है। २० लाख से अधिक बीडी बनाने की लिए हर साल सिर्फ़ ६ मजदूरों की जरुरत होति है। औसतन १००० बीडी प्रतिदिन इन मजदूरों द्वारा बनाईं जाती है।
- हाथ द्वारा निर्मित बीडी पर आयात शुल्क वर्ष २००६/०७ में करीबन ३३ प्रतिशत बढ़ा और वर्ष २००७/ ०६ में यह शुल्क १६ % और बढ़ा दिया गया।
- वर्ष १९९३ / ९४ और २००६/०७ के मध्य बीडी के उत्पाद में आयात राजस्व की गिरावट आई है वनस्पति सिगरेट उत्पाद के ।
- आयत शुल्क प्रत्येक १००० बीडी पर १८ रूपये है। वहीं बिना फिल्टर वाली छोटे सिगरेट पर आयत शुल्क १६८ रूपये प्रति १००० सिगरेट पर है।
- बिना फिल्टर वाली छोटे सिगरेट पर आयात शुल्क २१ प्रतिशत है वनस्पति आम फिल्टर युक्त सिगरेट के।
- यदि हम खुदरा मूल्य के तहत आयत शुल्क को देखें तो पातें हैं की यह शुल्क हाथ द्वारा निर्मित बीडी पर ८.८ % है। जबकि सिगरेट पर यह बोझ ३३ % से भी अधिक है।
- यद्यपि की इस बात का कोई पर्याप्त आंकडा मौजूद नही है की कितनी बीडी का उत्पादन हर साल किया जाता है। किंतु एक अनुमान के मुताबिक प्रत्येक वर्ष करीब ७.५० अरब से १.२ खरब तक की बीडी का उत्पादन प्रत्येक वर्ष होता है। जिसमें से करीब वर्ष २००६ / ०७ में ३.६० अरब बीडी के उत्पादन पर ही शुल्क लिया गया था। इससे स्पस्ट है लगभग आधे बीडी के उत्पाद पूर्णतः कर से मुक्त थी।
- बीडी पर लागु आयत शुल्क को किसी सिगरेट के आयत शुल्क से अलग नही किया जा सकता खास कर उन सिगरेटों पर जो की फिल्टर रहित होति हैं और बीडी के मुकाबले ही बिकती हैं। वर्ष १९९४/९५ में बिना फिल्टर रहित सिगरेटों पर आयत शुल्क कम कर दिया गया और बीडी के कर में वृद्धि कर दी गई । इससे पाया गया की आचानक बिना फिल्टर रहित सिगरेटों में गिरावट आई थी। जब बिना फिल्टर वाली छोटे सिगरेटों के उत्पाद शुल्क बढ़ा तो पाया गया की इसकी बिक्री में गिरावट दर्ज हुई है। जबकि बीडी की बिक्री में थोड़ा तेजी दर्ज हुई है।


सुझाव :
-- हाथ द्वारा बनाईं हुई बीडी और मशीन द्वारा बनाईं गई बीडी के अन्तर को ख़त्म करना चाहिए ।
- बीडी में भी गैर फिल्टर आधारित सिगरेटों की तरह ही उत्पाद कर लगना चाहिए जो कम से कम १६८ रूपये प्रति १००० बीडी पर होना चाहिए यदि ऐसा किया गया तो बीडी की कीमत प्रति पैकट जिसमे की करीब २५ बीडी होति है ४ से ८ रूपये बढ़ जायेगी ।
- इस बात की गारंटी प्रदान करना की बीडी के उत्पादन चाहे वो बड़े हों व छोटे या फिर वह किसी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बीडी का उत्पादन कर रहा हो उन सभी को बराबर उत्पाद कर के दायरे में रखना तथा समुचित प्राधिकारी द्वारा बीडी उद्योंगों की लगातार पर्याप्त मानकों के आधार पर जांच करते रहनी चाहिए।
- बिना ब्रांड के किसी भी बीडी उत्पाद की बिक्री बाज़ार में नही होनी चाहिए और ब्रांड का नाम बिक्री के पैकेट के ऊपर लिखा होना चाहिए।
- उत्पादन कर्ताओं और उनके एजेंटों द्वारा जितनी भी बीडी की बिक्री की गई है उसकी पर्याप्त जानकारी सरकार तक भेजते रहना ।
रास्ट्रीय स्तर पर लागु जि० एस० टी ० तम्बाकू उत्पाद के करों को आसानी से प्रोत्साहन निम्न माध्यमो द्वारा करेगा ।
- रास्ट्रीय स्तर पर लागु जि० एस० टी० मानको के अनुसार उत्पाद कर भी उसी तरह से किया जाना चाहिए जिस तरह से अन्य सामानों का लिया जाता है ।
- प्रत्येक सिगरेट के उत्पाद पर बराबर उत्पाद शुल्क होना चाहिए।

भारत में बीडी उद्योग की स्तिथि :--

भारत सरकार बीडी उद्योगों में काम कर रहे मजदूरों के कल्याण और उनको सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कुछ अधिनियम और नीतियाँ बनाईं हैं । किंतु सच्चाई टू यह है की वास्तव में इन नीतियों से अभी तक किसी भी तरह का लाभ इन मजदूरों को नही मिला है।

- भारत में करीब ३०० बड़े उद्योग बीडी बनाने के काम में लगे हैं और कई हज़ार अन्य छोटे उद्योग भी इसके इसके काम में लगे हुए हैं।

- बीडी उद्योग करीब ४४ लाख लोगों को सीधे तौर पर पूर्णकालिक रोजगार प्रदान करता है और करीब ४० लाख बीडी बनने के अन्य कामो में लगे हुए हैं।

- भारत के बीडी उद्योग ने वर्ष १९९९ में करीब १६.५ अरब उत्पाद कर और २० अरब विदेशे बिनिमय राजस्व भारत सरकार के लिए एकत्रित किया।

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- मुख्य अधिनियम जो बीडी मजदूरों के लिए बनाये गए हैं।

१ - बंधुआ मजदूर मुक्ति करण अधिनियम , 1976, यह अधिनियम बंधुआ मजदूरों के प्रोत्साहन को रोकता है।

२- बाल मजदूर रोकथाम अधिनियम १९८६, इस अधिनियम के तहत अव्यसक बच्चो को बीडी के बनाने के किसी भी काम में लगाना जुर्म है।

बीडी मजदूरों के लिए कल्याणकारी योजनाएं :-

बीडी मजदूर कल्याणकारी फंड १९७६, इस फंड के तहत बीडी उद्योगों में काम कर रहे मजदूरों को शिक्षा , चिकित्सा, बीमा योजना , घर का किराया इत्यादी प्रदान किया जाएगा।

- काम के दौरान बीमा योजना :- इस योजना के तहत काम के दौरान बीडी मजदूर को यदि किसी प्रकार की समस्या आती है तो उसको आर्थिक सहायता प्रदान की जायेगी।

इन कल्याणकारी योजनाएं और अधिनियमो के बावजूद सच तो यह है की कुल बीडी मजदूरों में से १५ से २० % बच्चे शामिल हैं। बीडी मजदूरों के पास किसी भी प्रकार का कोई पहचान पत्र नही है। कई शोधों द्वारा यह बात पता चलती है की बीडी बनाने के काम में लगी करीब ५० % महिलाएं कई तरह की सामाजिक दिक्कतों का सामना करती हैं।

बीडी मजदूर और उनकी आजीविका ।

बीडी लपेटने का सारा काम मुख्यतः आदमिओं द्वारा संचालित किया जाता है , और इस काम में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल होते हैं जो कई तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियो का सामना करतें हैं।

- बीडी उद्योग में काम कर रहे कुल मजदूरों में से करीब ७५% हिस्सा महिलाओं का होता है। किंतु बीडी उद्योग मुख्यतः पुरुषों द्वारा संचालित किया जाता है।

- एक अनुमान के मुताबिक बीडी उद्योग के काम में लगे करीब १६ % बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी उम्र १४ साल से कम की होती है मुख्यतः यह बच्चे सप्ताह के ७ दिन और करीब १४ घंटे प्रतिदिन काम करतें हैं।

- बीडी लपेटने के काम में यह बच्चे किसी भी तरह के दस्ताने और मास्क आदि का प्रयोग नही करते हैं। जिससे काम के वक्त उनके शरीर में तम्बाकू आदि के कड प्रवेश कर जाते हैं।


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