तम्बाकू जनित धुम्रपान के छेत्र में भारतीये बाज़ार बीडी से पुरी तरह से भरें हुए हैं। बीडी जिसको की तेंदू के पत्ते में लपेटकर बनाया जाता है पुरी तरह से तम्बाकू से भरी हुई होती है। बीडी का प्रयोग वैसे तो मुख्यतः आदमियों के द्वारा किया जाता है लेकिन इसको बनाने में महिलाओं और बच्चों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है जो बीडी को अपने घरों में बनातें हैं। सिगरेट के मुकाबले बीडी की बिक्री करीब ८:१ की है । यानि की प्रत्येक ८ बीडी पर १ सिगरेट की बिक्री होती है।
अत्यन्त घातक है बीडी का पीना : -
- बीडी मी पीने से लोगों में तपेदिक या टी ० बी० , स्वांश की बीमारी इत्यादी में बढोतरी देखी गई है। ।
- बंगलोर में किए गए एक शोध के द्वारा पता चलता है की प्रतिदिन १० बीडी पीने वाले व्यक्ति को करीब चार गुना ह्रदय के रोग का खतरा ज्यादा रहता है सामान्यतः ऐसे लोगों के जो की बीडी का उपयोग नही करते हैं।
- भारत में किए गए शोध के द्वारा भी इस बात का पता चलता है की बीडी पीने वाले लोगों में फेफडे के कैंसर के होने का खतरा करीब ६ गुना ज्यादा रहता है वनस्पति उन लोगों के जो की बीडी का उपयोग नही करते हैं।
- तमिलनाडु में किए गए शोध के द्वारा यह बात निकल कर आई की करीब ४७ % ग्रामीण पुरुषों की मौत जो की तपेदिक की बीमारी से भी ग्रसित थे , बीडी पीने की वजह से हुई।
- मुम्बई में किए गए शोध के द्वारा भी इस बात का पता चलता है की ऐसे लोग जो की बीडी का सेवन करतें हैं उनमें मौत की संभावनाएं करीब ६४ % अधिक रहती है वनस्पति उन लोगों के जो की इसका उपयोग नही करते हैं। यहाँ तक की ऐसे लोगों में भी जो की अनुमानतः करीब ५ बीडी का सेवन प्रतिदिन करतें हैं उनमे इसके द्वारा होने वाली मौतों की संभावनाएं करीब ४२ प्रतिशत अधिक होती है।
- बीडी का सेवन करने वाले लोग कार्बन मोनोआक्साइड और निकोटीन आदि को ज्यादा छोड़ते हैं वनस्पति उन पश्चिमी बनावट की सिगरेट के । इसलिये बीडी या तो ज्यादा या फिर सिगरेट के बराबर खतरनाक है।
--- तम्बाकू की खेती और इसके पत्ते से बीडी बनाने के व्यवसाय में लगे हुए लोगों और उनके परिवारों को इससे काफी खतरा है ।
- शोधों से पता चलता है की जो लोग बीडी के पत्ते की कटाई के काम में लगे हुए हैं उनके पेशाब में निकोटिन की मात्र पाए गई है। लगातार इस काम में बने रहने से मजदूरों में इस बात की भी सम्भावना बढ़ जाती है की वह इस नशे के आदि हो जायें।
- ऐसे लोग जो बीडी के पत्तो को लपेटने का काम करतें हैं उनमें तपेदिक , अस्थमा , एनेमिया , आंखों की समस्याएँ तथा महिलाओं में स्त्री रोग से संबंधित समस्याएँ आ सकती हैं।
- बीडी को घरों में रखने से उनमे रहने वाले लोगों में खांसने और सरदर्द की बीमारी शुरू हो जाती है।
- बीडी के पत्तों को लपेटने के काम में लगे हुए लोग गरीबी की तरफ़ और बढ़ते जातें हैं।
- राज्य सरकारों द्वारा बीडी के लपेटने के काम में लगे हुए लोगों के लिए जो कीमतें निर्धारित की गई है वह प्रति १००० बीडी लपेटने पर उत्तर प्रदेश में २९ रूपये और गुजरात में ६६.८ रूपये निर्धारित है।
- लगातार बीडी के काम में लगे हुए लोगों में करीब ४५ साल की उम्र तक उनके हाथों के उंगलियों की उपरी सतह के खालें मर जाती हैं और वह काम करना बंद कर देती हैं। इस परिस्थिति में वह लोग जो बीडी बनाने का काम नही कर पाते भीख मांगने का काम सुरु कर देतें हैं।
- बीडी उत्पादन का सबसे मुख्य भार महिलाएं और बच्चे उठाते हैं।
- करीब २२५,००० बच्चे बीडी बनाने के काम में लगे हुए हैं ।
मंगलवार, 13 मई 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें